खेत की मिट्टी में दाव सीखकर कुश्ती में भारत के लिए जीते कई मेडल - यह है फिल्म दंगल की असली गीता फोगाट
खेत की मिट्टी में दाव सीखकर कुश्ती में भारत के लिए जीते कई मेडल - यह है फिल्म दंगल की असली गीता फोगाट
देश की महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। शिक्षा हो खेल हर क्षेत्र में महिलाओं ने देश का नाम रोशन किया है। समाज के बंधनो को तोड़कर आगे बढ़ने वाली ऐसी ही एक महिला है गीता फोगाट। गीता फोगाट वही हैं जिनके जीवन पर आधारित फिल्म दंगल को हर ओर सराहा गया था। जितनी पहचान फिल्म दंगल ने गीता को दिलाई उससे ज्यादा पहचान गीता फोगाट ने अपनी प्रतिभा से पूरे देश को दिलाई थी। गीता फोगाट राष्ट्रमंडल खेल में पहला गोल्ड मेडल जितने वाली पहली महिला रेसलर है। गीता फोगाट ने 2010 में आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेलों का में स्वर्ण पदक जीतकर ने इतिहास रच दिया था। वह गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं। गीता फोगाट आज अपनी मेहनत और लगन से जिस मुकाम पर पहुँची है वहां वो लाखों लड़कियों के लिए एक प्रेरणा (Motivation) बन गई है। लेकिन इस राह में उन्हें काफी अड़चनें भी आईं। आइए जानते हैं गीता फोगाट के संघर्ष और सफलता की कहानी (Success Story)।
पिता की छत्रछाया में पहचाना हुनर
15 दिसम्बर 1988 को हरियाणा के भिवानी जिला के गावं बलाली में दंगल गर्ल के नाम से मशहूर गीता फोगाट का जन्म हुआ था। चार बहनों में गीता सबसे बड़ी बहन है। गीता का जन्म ऐसे माहौल में हुआ था जब लड़का होने पर बधाई दी जाती थी और लड़कियां होने पर शोक मनाया जाता था। इस भेद को मिटाते हुए उनके पिता महावीर फोगाट ने अपनी लड़कियों को ही लड़का समझा और लड़को की तरह उन्हें कुश्ती की ट्रेनिंग दी। उनके पिता ने उन्हें छोटे उम्र से ही पहलवानी के दाव पेंच सिखाने शुरू कर दिए और अच्छी तरह वो पहलवानी में प्रशिक्षित हो इसलिए उनके पिता ने उनका स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ़ इण्डिया में दाखिल करा दिया था।
गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की उम्र में गीता अपने पिता के संरक्षण में कठोर परिश्रम करने लगी। वो अपनी बहन बबीता के साथ सुबह-सुबह दौड़ने चली जाती थी। जिसके बाद अखाड़े में भी उन्हें घंटों प्रैक्टिस करनी पड़ती थी और लड़को से मुकाबला करती थी। जिस समाज में लड़कियों का काम घर संभालना समझा जाता था उस समाज में गीता को कुश्ती करता देख हर कोई उनकी आलोचना करता था। लेकिन महावीर सिंह फोगाट आलोचना की परवाह न करते हुए गीता को प्रशिक्षण देने लगे।
हरियाणा के छोटे से गांव से बनाई बड़ी पहचान
वो कहावत है ना कि अगर इरादें मजबूत हो और हौसले बुलंद हो तो दुनियां की कोई भी ताकत आप को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है। इसी बात को सच करते हुए गीता ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी को वेट लिफ्टिंग में कांस्य पदक जीतते देख महावीर फोगाट ने अपनी बेटियों को भी पदक दिलाने का ठान लिया था। उनका यही मकसद था कि लड़कों की तरह लड़कियां भी पदक जीतें। इसके बाद ही उन्होंने गीता-बबीता को पदक जीतने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। महावीर जी ने अपने बेटियों के लिए कसरत से लेकर खाने-पीने हर चीज में बदलाव कर उसके नियम बना दिए थे। जिसके बाद वो गीता और बबीता को पहलवानी के गुर सिखाने लगे।धीरे-धीरे गाँव के दंगल से आगे बढ़ते हुए गीता ने जिला और राज्य स्तर तक कुश्ती में सभी को पछाड़ा और नेशनल व इंटरनेशनल मुकाबलों के लिए खुद को तैयार करने लगीं। इसके बाद साल 2009 में गीता फोगाट ने राष्ट्रमंडल कुश्ती चैपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
लोगों के तानों को अनसुना कर भारत का नाम किया रोशन
साल 2010 में दिल्ली में आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेलों में फ्री स्टाइल महिला कुश्ती के 55 Kg कैटेगरी में गोल्ड मेडल हासिल किया। गीता ऐसा करने वाली वो पहली भारतीय महिला बन गयीं। कॉमन वेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीत कर गीता जब पहली बार गाँव पहुंची तो जिन लोगों ने कभी उन्हें तानें मारे थे वो आज बैंड बाजे और फूलों का हार लेकर खड़े थे। गीता ने पदक तो जीता ही साथ में लोगों की मानसिकता को बदल कर भी वो जीत हासिल की जो अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बन गई। गीता की सफलता की कहानी (Success Story) को देखते हुए फिल्म दंगल का निर्माण किया गया। इस फिल्म में आमिर खान ने महावीर फोगाट की भूमिका निभाई थी। गीता फोगाट की भूमिका सना शेख ने निभाई थी। इस फिल्म ने चीन में भी 1200 करोड़ कमाकर इतिहास रच दिया था। आज पूरे देश को अपनी इस बेटी पर गर्व है।
गीता फोगाट ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर अपनी सफलता की कहान लिखी है। आज वो उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है जो लड़कियों को कमजोर मानते हैं, उन्हें आगे नहीं बढ़ने देना चाहते। गीता फोगाट ने यह सच कर दिखाया है कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं होती।