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कभी डायन कहकर गांव से दिया था निकाल, सामाजिक कार्यों की बदौलत मिला पद्मश्री सम्‍मान

कभी डायन कहकर गांव से दिया था निकाल, सामाजिक कार्यों की बदौलत मिला पद्मश्री सम्‍मान



छुटनी देवी (झारखंड)

अपनी मेहनत से इंसान अपनी किस्मत का रूख भी बदल देता है। इस बात को प्रमाणित करने का कार्य किया हैं झारखंड की रहने वाली छुटनी देवी ने। जिन्होंने समाज के तानों को अपने मेहनत से आशीर्वाद बना लिया। छुटनी देवी को कभी समाज ने डायन कहकर प्रताड़ित किया था और घर एवं समाज से बाहर कर दिया था। लेकिन उन्होंने आज समाज की प्रताड़ना को सहते हुए सामाजिक कार्यों की बदौलत पदमश्री सम्मान पाने का सफर तय किया है। समाज के तिरस्कार से पदमश्री सम्मान प्राप्त करने का यह सफर काफी प्रेरणादायक और आंखें खोल देने वाली है


डायन कहकर लोगों ने किया था प्रताड़ित


झारखंड सरायकेला-खरसावां जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली छुटनी देवी को 25 साल पहले डायन बताते हुए गांव-घर से निकाल दिया गया था, उन्हें काफी प्रताड़ित किया गया था लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज  अंधविश्वास और इस कुप्रथा के खिलाफ लोगों को जागरुक करने का काम रही हैं। छुटनी देवी की शादी 12 वर्ष की उम्र में ही महताइनडीह के धनंजय महतो से हो गई थी। शादी के बाद कुछ दिनों तक सबकुछ ठीक ठाक चला लेकिन, उनके पति के बड़े भाई को छुटनी देवी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी क्योंकि वो अपने भाई की शादी अपनी साली से करवाना चाहता था। इस कारण छुटनी देवी को काफी प्रताड़ित किया जाता था। उनके घर में चोरी भी करवा दी गई।


विकट परिस्थिति में भी नहीं मानी हार

छुटनी देवी ने विपरित परिस्थिति में कभी हार नहीं मानी। गांव वालों द्वारा बाहर निकाले जाने के बाद वो अपने परिवार के साथ गांव के बाहर झोंपड़ी बनाकर रहने लगी। इसी बीच लोगों के कहने पर उनकी बेटी ने भी उन्हें डायन कह दिया। गांव के लोग छुटनी देवी को अनायास ही डायन कहने लगे। आस-पड़ोस में घटने वाली घटनाओं का दोष छुटनी देवी पर ही मढ़ दिया जाता था। लोगों ने उन्हें मल-मूत्र तक पीने को विवश किया। छुटनी देवी को पेड़ से बांधकर पीटा गया और अ‌र्दधनग्न कर गांव से निकाल दिया गया। छुटनी देवी ने किसी तरह अपनी जान बचाई। पुलिस ने भी उनकी कोई मदद नहीं की थी। 

गैर सरकारी संस्था 'आशा’ के संपर्क में आकर मिली नई दिशा


हर जगह से निराश छुटनी देवी किसी तरह मायके झाबुआकोचा आ गईं। यहां कुछ महीने रहने के बाद वो गैर सरकारी संस्था 'आशा’ के संपर्क में गईं। जिसके बाद वो अपने साथ हुए जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने लगी। गांव में और किसी महिला के साथ ऐसा अत्याचार ना हो इसलिए छुटनी देवी गांव-गांव जाकर लोगों को जागरुक करने लगी। छुटनी देवी प्रताड़ित महिलाओं की सहायता करना ही अपना धर्म मानती हैं। वो कहती हैं कि यही उनका काम है। छुटनी देवी इस कुप्रथा के खिलाफ अभियान चलाने के साथ अपने निजी खर्च से रोजाना 15-20 गरीब पीड़ित महिलाओं भोजन भी उपलब्ध कराती हैं।


सरकार ने किया पद्मश्री सम्मान से सम्मानित


छुटनी देवी को पद्मश्री सम्‍मान 2021 से सम्मानित किया गया है। 62 साल की छुटनी महतो के नाम के आगे अब भारत का श्रेष्ठ सम्मान पद्मश्री जुड़ गया है। छुटनी देवी को पद्मश्री जैसा बड़ा सम्मान मिलने वाला है लेकिन छुटनी देवी को पद्मश्री के बारे में कुछ पता नहीं था। जब उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से फोन आया और बोला गया कि आपको पद्मश्री मिलेगा तो छुटनी देवी ने कहा कि अभी टाइम नहीं है, एक घंटे बाद फोन करना। छुटनी को फिर दोबारा से फोन आया। तब लोगों ने उन्हें बाताया कि यह एक बड़ा सम्मान है। आपका नाम और फोटो सभी अखबार और टीवी में आएगा। 

छुटनी अपने काम के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि वो मरते दम तक लोगों को जागरुक करने का संघर्ष करती रहेंगी। छुटनी देवी के साथ आज 62 प्रताड़ित की गई और महिलाएं भी है। जो लोगों को जागरुक करने का काम करती है। छुटनी देवी को स्थानिय पुलिस का भी साथ मिलता है। कभी डायन बताकर गांव से निकाली गई छुटनी देवी आज इस कुप्रथा की शिकार महिलाओं के लिए मसीहा बन चुकी हैं। छुटनी देवी आज लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspirational) हैं। उनकी सफलता की कहानी (Success Story) सभी के लिए मोटिवेशन (Motivation) है। 

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