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Nawazuddin Siddiqui - इस कलाकार ने बॉलीवुड में सांवले रंग रूप की परिभाषा ही बदल दी |

Nawazuddin Siddiqui - इस कलाकार ने बॉलीवुड में सांवले रंग रूप की परिभाषा ही बदल दी |

  Nawazuddin Siddiqui - इस कलाकार ने बॉलीवुड में सांवले रंग रूप की परिभाषा ही बदल दी |

 
अक्सर सुनने में आता है कि फ़िल्मी सितारों की दुनिया में  सांवले रंग वालों को ज्यादा इज़्ज़त नहीं दी जाती, चाहें बात मीना कुमारी की हो या फिर राखी सावंत की । लेकिन आज अभिनय की दुनिया में एक ऐसा शख्स है जिसने इस सांवलेपन की परिभाषा को ही बदल दिया। उसे दिखा दिया कि प्रतिभा किसी रंग रूप की मोहताज़ नहीं होती।  यह शख्स कोई और नहीं बल्कि जाने माने बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी है।

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Nawazuddin Siddiqui


वडोदरा में बतौर केमिस्ट किया काम

नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) का जन्म यूपी के मुज़फ़्फरनगर जिले के छोटे-से कस्बे बुढ़ाना के किसान परिवार में हुआ था। नवाजुद्दीन ने अपनी इंटरमीडिएट तक की पढाई गांव से ही पूरी की, लेकिन उन्हें गांव की ज़िंदगी पसंद नहीं आई, क्योंकि क्योंकि उनके अनुसार गांव के लोग केवल तीन ही चीज जानते थे  – “गेंहू, गन्ना, और गन” लेकिन नवाजुद्दीन ज़िंदगी में कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए वो हरिद्वार चले गए जहां , Gurukul Kangri Vishwavidyalaya से उन्होंने Chemistry में B.Sc की पढाई पूरी की। इसके बाद नवाजुद्दीन गुजरात के वडोदरा में बतौर केमिस्ट काम करने लगे , लेकिन नवाजुद्दीन इस काम से खुश नहीं थे वो अपनी ज़िंदगी से कुछ और चाहते थे।

 वॉचमैन की करनी पड़ी थी नौकरी

नवाजुद्दीन के दोस्त एक बार उन्हें एक गुजराती नाटक दिखाने के लिए लेकर गए, जिसे देखने के बाद नवाज़ुद्दीन को पहली बार एहसास हुआ की उन्म एक्टिंग के लिए ही हुआ है। तब नवाजुद्दीन के दोस्तों ने उन्हें थिएटर करने की सलाह दी, जिसके बाद नवाजुद्दीन ने तुरंत वडोदरा की नौकरी छोड़ दिल्ली की तरफ रूख किया। दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने National School Of Drama में एडमिशन लेने के बारे में सोचा, लेकिन इस स्कूल में दाखिला लेने से पहले नाटक में अनुभव की जरूरत होती है। जिसके बाद नवाजुद्दीन ने Shakshi Theatre Group ज्वाइन कर लिया, जहां उनकी मुलाकात मनोज बाजपेयी और सौरभ शुक्ला से हुई जो पहले से ही एक्टिंग सीख रहे थे। नवाज़ुद्दीन ने छोटे-मोटे नाटक करने शुरू कर दिए थे, लेकिन नाटकों में पैसे नहीं दिए जाते थे,जिस वजह से  नवाज़ुद्दीन अपना खर्च चलाने के लिए नौकरी की तलाश में जुट गए, तब काफी कोशिश करने के बाद उन्हें एक दिन वॉचमैन की नौकरी मिल गयी। नवाज़ुद्दीन चाहते तो अपने परिवार से मदद ले सकते थे, लेकिन वो अपने बलबूते पर कुछ करना चाहते थे। यहीं से धीरे-धीरे शुरू हुई नवाज़ुद्दीन के संघर्ष की असल कहानी....

हीरो बनने को लेकर लोगों से उड़ाया मज़ाक

रोज़ाना सुबह 9 से शाम 5 बजे तक वॉचमैन की ड्यूटी करते और शाम के समय में एक्टिंग और नाटक का अभ्यास करते। नवाज़ुद्दीन की ज़िंदगी कुछ समय तक ऐसा ही चलता गया और काफी संघर्षों के बाद जाकर उन्हें दिल्ली के National School Of Drama में एडमिशन मिल गया। ड्रामा स्कूल में हॉ्स्टल की सुविधा उपलब्ध थी। नवाज़ुद्दीन अब सुबह से लेकर रात तक एक्टिंग सीखने में जुट गये। इस दौरान उन्होंने कड़ी मेहनत की और वहां से ग्रैजुएट होकर निकले। जब नवाज़ुद्दीन ने हीरो बनने की बात अपने रिश्तेदारों को बताई तो वो मज़ाक बनाने लगे, लेकिन नवाज़ुद्दीन ने बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए मुंबई की तरफ रूख किया। मुंबई पहुंचने के बाद 15 दिन तक वो अपने कमरे से बाहर तक नहीं निकले, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था की वो शुरुआत  कैसे करें।

छोटे किरदार के लिए खाने पड़े धक्के 

नवाज़ुद्दीन  हिम्मत के साथ एक्टिंग के लिए ऑडिशन देने जाने लगे, लेकिन शुरुआत में  लगातार रिजेक्शन का दौर जारी रहा। नवाज़ुद्दीन रोज़ाना Producers, Directors के ऑफिस में चक्कर लगाते थे, ताकि कोई छोटा मोटा रोल ही मिल जाए। जब वो ऑडिशन देने जाते तो उनसे पूछा जाता था -

 “क्या काम है?” तब नवाज़ुद्दीन कहते, “एक्टर हूं, ये बाते सुनकर लोग मज़ाक उड़ाते और कहते देखकर “लगते तो नहीं हो"। नवाज़ुद्दीन के नाक-नक्श ठीक न होने की वजह से काफी डायरेक्टर ने इनको फिल्मों में लेने से बना कर दिया, जिसकी वजह से इनकी जिंदगी काफी संघर्ष पूर्ण रही और छोटे किरदार के लिए भी जगह-जगह धक्के खाने पड़े । नवाज़ुद्दीन को अब रिजेक्शन की आदत हो गई थी, इसलिए अब इसका कोई भी असर उन पर नहीं पड़ता था।

नवाज़ुद्दीन हताश के दिनों में अपनी मां की कही हुई बात याद करते 12 साल में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं बेटा तू तो इंसान है। मुंबई में संघर्ष के दौरान वह एक समय खाना खाते तो दूसरे समय के लाले पड़ जाते। उनको टीवी सीरियलों में भी किरदार नहीं मिल पाता था, क्योंकि नवाज़ुद्दीन साधारण-से  दिखने वाला व्यक्ति थे और डायरेक्टर को लंबे - चौड़े खूबसूरत  हीरो मटेरियल की तलाश रहती थी।

नवाज़ुद्दीन के टैलेंट को पहचाने वाला कोई नहीं था, उनके पास वो खूबसूरती नहीं थी जिससे उन्हें फिल्मों में बड़ा रोल मिल जाए। काफी संघर्ष के बाद नवाज़ुद्दीन को उनकी लाइफ का पहला ब्रेक आमिर खान की फिल्म सरफ़रोश में मिला। लेकिन इस फिल्म में केवल 40 सेकंड का उनका किरदार था।


नवाज़ुद्दीन को चोर, बदमाश, भिखारी जैसे किरदार ही मिलते थे। इसी बीच नवाज को अनुराग कश्यप की फिल्म ब्लैक फ़्राईडे में काम करने का मौका मिला। उसके बाद फिराक, न्यूयॉर्क जैसी फिल्मों में काम मिला। साल 2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर-1,2, तलाश और पान सिंह तोमर जैसी फिल्मों से उन्हें बॉलीवुड में पहचान मिली।

नवाज़ुद्दीन ने ज़िंदगी में रिजेक्शन का एक लंबा दौर झेला है, लेकिन उन्होंने अपना धीरज नहीं खोया और मेहनत के साथ आगे बढ़ते चले गए। उनके जीवन का यही फलसफा रहा है, ‘‘यह इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए, आग का दरिया है और डूब कर जाना है.’’

Digi Shala News salutes Mr. Nawazuddin Siddiqui

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