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गरीबी से लड़कर बनाई अपनी पहचान, कचरे के उपयोग से तैयार किये 600 ड्रोन

गरीबी से लड़कर बनाई अपनी पहचान, कचरे के उपयोग से तैयार किये 600 ड्रोन

गरीबी से लड़कर बनाई अपनी पहचान, कचरे के उपयोग से तैयार किये 600 ड्रोन



भारत में नई सोच और नई तकनीकियों पर खोज करने वाले लोगों की कमी नहीं हैं, ऐसे ही प्रतिभावान है कर्नाटक के NM Pratap जिन्होंने अपनी सूझबूझ और नई तकनीकी से भारत को ड्रोन दिया। यूं तो हमने हमेशा प्रेरणादायक और संघर्षशीलता से भरी कहानियां सुनी हैं। लेकिन NM Pratap ने तकनीकी उन्नति के मार्ग में कई बाधाओं से झुझते हुए कम सुविधा तथा कम पैसे में नये अविष्कार को नया आयाम दिया।

NM Pratap का जन्म कर्नाटक के पास एक दूर-दराज गांव कादिकुडी में हुआ। उनके पिता एक किसान थे, जिनकी मासिक आय 2000 रुपये थी। प्रताप बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स से बेहद लगाव था। प्रताप Engineering पढ़ना चाहते थे, लेकिन घर की तंगी की वजह से उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई। इसके बाद प्रताप ने जैसे - तैसे बीएससी में एडमिशन लिया। लेकिन हॉस्टल की फीस नहीं भरने के कारण उन्हें हॉस्टल से भी बाहर निकाल दिया गया।

इस हालात से मज़बूर होकर प्रताप को बस स्टैंड को ही अपना घर बनाना पड़ा तथा सार्वजनिक शौचालय आदि उनकी रोजमर्रा की जरूरत बन गये। हालत ये हो गई की गरीबी ने उन्हें रात और दिन सड़क पर बिताने के लिए मज़बूर कर दिया। इसके बाद प्रताप ने ठान ली जैसे भी हो अपने दम पर कंप्यूटर भाषा का ज्ञान प्राप्त करके ही रहेंगे।

तत्तश्चात C ++, JavaCore और Python सीखा तथा eWaste के माध्यम से ड्रोन के बारे में जाना। प्रताप को कंप्यूटर भाषा ज्ञान के बाद ये महसूस हुआ की उन्हें साइबर कैफ़े की जरूरत है, मगर पैसे के तंगी की वजह से वो इसे पूरा नहीं कर सकते थे। तब उन्होंने साइबर कैफ़े में साफ़-सफ़ाई का काम शुरू कर दिया और इसके बदले उन्होंने पैसे नहीं लिये बल्कि 45 मिनट तक इंटरनेट इस्तेमाल करने की मोहलत मांगी।

NM Pratap ने सारी जानकारी हासिल करने के बाद ड्रोन बनाने के लिए अपने दिमाग में एक विचार तैयार किया। चूंकि पैसे तो उनके पास थे नहीं इसलिए प्रताप ने कबाड़ जैसे की टूटे हुए ड्रोन,मोटर और इलेक्ट्रॉनिक चीज़ो से ड्रोन बनाना शुरू कर दिया। फिर कई बार असफल होने के बाद प्रताप एक दिन ड्रोन बनाने में कामयाब रहे जो उड़ भी सकता था, साथ ही तस्वीरें भी खींच सकता था।

जब उन्होंने ड्रोन तैयार कर लिया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा,तथा उन्होंने दुनिया को दिखाने के लिए ड्रोन मॉडल प्रतियोगिता में भाग लिया और unreserved compartment में बैठ IIT Delhi पहुंचे। जहां उन्होंने ये मॉडल पूरी दुनिया को दिखाई तथा 2nd prize जीता। उसी दौरान जापान की एक कंपनी वहां आई थी,और NM Pratap के काम को देखने के बाद उनकी काबिलियत को खूब सराहा। तब उसी समय प्रताप को जापान में एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिये कहा गया।

प्रताप को जापान जाने के लिए 60,000 रुपये की ज़रूरत थी। जिसके लिए प्रताप को काफी ज्यादा मशक़्क़त करनी पड़ी और रिश्तेदारों के सामने हाथ भी फैलाने पड़े, मगर किसी न भी मदद नहीं की। फिर एक सज्जन व्यक्ति की मदद से मैसूर के एक दानी ने उनके एयर टिकट को sponsored किया और बाकी के पैसे उन्हें अपनी मां की सुहाग की निशानी मंगलसूत्र को बेचकर जुटाना पड़ा था, हालांकि मंगलसूत्र बेचने के दौरान प्रताप का मन काफी व्याकुल हो रहा था। मगर उनके पास कोई और चारा भी नहीं था।

फिर किसी तरह प्रताप टोक्यो पहुंचे, जब वहां पहुंचे तो उनके पास केवल 1400 रुपये थे। ऐसे में उन्होंने बुलेट ट्रेन में सफर करना उचित नहीं समझा,क्योंकि बहुत अधिक महंगी थी। ऐसे में अपने मंजिल तक पहुंचने के लिए उन्होंने 16 अलग-अलग स्टेशनों पर ट्रेनों को बदला। उसके बाद अपने सामान के साथ 8 किमी पैदल चलकर सफर को तय किया। काफी थकान के बावजूद भी उनके उत्साह में कोई कमी देखने को नहीं मिली और टोक्यो पहुंचने के बाद प्रताप ने प्रतियोगिता में बढ़चढ़कर भाग लिया। इसके बाद उनकी काबिलियत को देखते हुए गोल्ड और सिल्वर मैडल से सम्मानित भी किया गया।

वहीं 2018 में हुए International Drone Expo में Albert Einstein Innovation Gold Medal जीत कर भारत का नाम रौशन किया। अब प्रताप को ड्रोन वैज्ञानिक के तौर पर भी जाना जाता है। फिलहाल प्रताप डीआरडीओ के एक प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं।

Digi Shala News Salutes NM Pratap.

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