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कभी खुद नहीं ली औपचारिक शिक्षा, लेकिन आज फल बेचकर दूसरों के लिए खोल दिया स्कूल, अनोखी मिसाल पेश करने वाले ‘श्री हरेकला हजब्बा’ पद्मश्री सम्मान से हुए सम्मानित

कभी खुद नहीं ली औपचारिक शिक्षा, लेकिन आज फल बेचकर दूसरों के लिए खोल दिया स्कूल, अनोखी मिसाल पेश करने वाले ‘श्री हरेकला हजब्बा’ पद्मश्री सम्मान से हुए सम्मानित

कभी खुद नहीं ली औपचारिक शिक्षा, लेकिन आज फल बेचकर दूसरों के लिए खोल दिया स्कूल, अनोखी मिसाल पेश करने वाले ‘श्री हरेकला हजब्बा’ पद्मश्री सम्मान से हुए सम्मानित

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Shri Harekala Hajabba

आज के समय में जब अधिकांश लोग खुद के बारे में ही सोचते रहते हैं ऐसे में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी आर्थिक स्थिति से ऊपर उठकर दूसरों के लिए कुछ करने का कार्य करते हैं। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं दक्षिण कन्नड़ के रहने वाले श्री हरेकला हजब्बा। जो पेशे से एक फल विक्रेता हैं लेकिन आज वो बच्चों के लिए स्कूल खोल एक मिसाल कायम कर चुके हैं। श्री हरेकला हजब्बा रोजाना फल बेचकर 150 रूपये कमाते हैं लेकिन उन्होंने अपनी इस कमाई को नेक काम में लगाने का विचार किया। उन्होंने नयापड़ापु में वर्ष 2000 में स्कूल खोला। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, उन्होंने कर्ज लेकर भी शिक्षा देना जारी रखा। उन्होंने अपनी बचत के पैसों का इस्तेमाल विद्यालय खोलने के लिए किया। उनके इस समाज सेवा के कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। एक फल विक्रेता के रूप में काम करने वाले श्री हरेकला हजब्बा (Harekala Hajabba) के लिए स्कूल खोलना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष की यह प्रेरणादायक कहानी।

खुद कभी नहीं ली औपचारिक शिक्षा लेकिन दूसरों के लिए खोला स्कूल

कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ के रहने वाले श्री हरेकला हजब्बा (Harekala Hajabba) के गांव नयापड़ापु में कोई स्कूल नहीं था। जिसके कारण वो कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। वो सड़कों पर फल बेचा करते थे जिससे उन्हें तकरीबन 150 रूपये की कमाई हो जाती थी। उन्होंने इस कमाई का प्रयोग बच्चों के लिए स्कूल खोलने में किया ताकि गांव के दूसरे बच्चों को सही शिक्षा मिल सके। एक दशक से वो अपने गांव की एक मस्जिद में गरीब बच्चों को पढ़ा रहें हैं। स्कूल खुलने के बाद हजब्बा खुद सुबह जल्दी उठते हैं और रोज वहां की सफाई करते हैं। इतना ही नहीं स्कूल में साफ पानी नहीं आता जिसके लिए वह बच्चों के पानी पीलाने के लिए खुद पानी को उबालते हैं। जिसके बाद बच्चे स्कूल में पानी पीते हैं।

विदेशी पर्यटक की बात ने बदल दी सोच

श्री हरेकला हजब्बा फल बेचकर खुश थे। उनके जीवन में बदलाव तब आया जब वो एक विदेशी पर्यटक से मिले। एक बार एक विदेश युगल उनसे संतरे की कीमत पूछ रहा था लेकिन उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी जिसके कारण वो उनकी बात का जवाब नहीं दे सके। जिसके बाद युगल चला गया। उन्हें बहुत बुरा लगा। हरेकला ने महसूस किया कि कम से कम उनके अपने गाँव के बच्चों को इस स्थिति में नहीं होना चाहिए। इस घटना से आहत, हजाबा ने अंग्रेजी सीखने और अपने स्कूल के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मुहैया कराने का फैसला किया ताकि किसी और को ऐसी परिस्थिति का सामना न करना पड़े, उन्हें एहसास हुआ कि संचार जीवन में प्रगति करने में मदद कर सकता है, और साथ ही साथ लोगों को एक साथ ला सकता है। इसके लिए शिक्षित होना बहुत जरूरी है। जिसके बाद उन्होंने स्कूल खोलने पर अपना ध्यान लगा दिया।

बचत के पैसों से खोला स्कूल

श्री हरेकला हजज्बा के (Harekala Hajabba) गांव में साल 2000 तक कोई स्कूल नहीं था, उन्होंने अपनी मामूली कमाई से पैसे बचाकर वहां स्कूल खोला। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, उन्होंने ऋण भी लिया और अपनी बचत का इस्तेमाल स्कूल के लिए जमीन खरीदने में किया। महज 150 रुपये प्रति दिन कमाने वाले हजज्बा को स्थानीय लोगों और अधिकारियों से बहुत कम सहयोग मिला, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प से 28 छात्रों के साथ एक प्राथमिक विद्यालय खोला। स्कूल खुलने के बाद हर साल छात्रों की संख्या बढ़ती गई। हर दिन 150 रुपये कमाने वाले इस व्यक्त‍ि के जज्बे ने ऐसा जादू किया कि मस्ज‍िद में चलने वाला स्कूल आज प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज के तौर पर अपग्रेड होने की तैयारी कर रहा है।

पद्मश्री सम्मान से हुए सम्मानित

बच्चों को शिक्षित कर महान कार्य करने वाले श्री हरेकला अपने जीवन में एक आम आदमी है। सरकार ने जब उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की तो वो एक राशन की लाईन में लगे थे। उन्हें इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं था कि उन्हें सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इस सम्मान को पाने के बाद हजबा के खुशी की ठिकाना नहीं रहा। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। 

ये बात तो बिलकुल सही है की इंसान अपने रुतबे, पैसे और शोहरत से ज्यादा इंसानियत के जज्बे से दिलों में जगह बनाता है। श्री हरेकला हजब्बा (Harekala Hajabba) ने अपने हौंसले और जज्बे से अपनी सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। दूसरों को शिक्षित करने का महान कार्य करने वाले श्री हरेकला हजब्बा आज सही मायने में लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है। Digi Shala News श्री हरेकला हजब्बा की मेहनत और उनके हौंसलों की तहे दिल से सराहना करता है।

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