Lakshman Das Mittal - पिता की आंखों में आंसू देख इस शख्स ने खड़ा किया अरबों का कारोबार
Lakshman Das Mittal Biography पिता की आंखों में आंसू देख इस शख्स ने खड़ा किया अरबों का कारोबार
अगर आपका खुद पर यकीन और इरादा मजबूत हो, तो जिंदगी की हर लड़ाई को हराकर जंग जीती जा सकती है। ऐसी ही शख्सियत हैं पंजाब के लक्ष्मण दास मित्तल जिन्होंने फैमिली बिज़नेस को डूबते हुए देख कड़ी मेहनत के दम पर देश के 52वें सबसे अमीर शख्स बने।
लक्ष्मण दास मित्तल ( Lakshman Das Mittal ) का जन्म (Worth) पंजाब के भिंडरकला गांव में हुआ था, उनके पिता हुकुम चंद अग्रवाल मंडी में ग्रेन डीलर थे। इस काम से जितनी कमाई होती थी, उन्हीं पैसों से घर का ख़र्च चलता था। लक्ष्मण दास मित्तल के पिता शिक्षा की अहमियत समझते थे इसलिए वो अपने बेटे को हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित करते थे। वैसे लक्ष्मण दास भी बचपन से ही पढ़ने में काफी ज्यादा तेज़ - तरार थे, लक्ष्मण दास ने इंग्लिश और उर्दू में पंजाब यूनिवर्सिटी से एमए किया। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक एलआईसी एजेंट के तौर पर की थी, लेकिन वो खुद के दम पर कुछ करना चाहते थे, इसलिए नौकरी छोड़कर 1962 में पंजाब के होशियारपुर जिले में स्थानीय लोहारों की मदद से थ्रेसर बनाना शुरू कर दिया। लेकिन उनका यह बिज़नेस सही तरह चल नहीं पाया। उनका थ्रेसर का बिज़नेस पूरी तरह से चौपट हो गया मजबूरन लक्ष्मीदास मित्तल को खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ा।
दिवालिया होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी, लेकिन वह एक दिन अपने पिता को रोता देख दंग रह गए और उन्होंने उसी वक़्त फैसला किया कि वो अपने मां-बाप को दुनिया की सारी खुशियां देंगे, उनकी हर जरुरत को पूरा करेंगे। आज के बाद उनकी आँखों में कभी आंसू नहीं आने देंगे। कुछ समय बाद लक्ष्मीदास मित्तल के दिमाग में एक और आइडिया आया, उन्होंने काफी मेहनत और संघर्ष के बाद सोनालिका ग्रुप की नींव रखी, जो आज के समय में भारत की तीसरी बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनियों में शामिल है। इसके बाद उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में काम कर रहे अपने एक दोस्त की मदद ली और उनके दोस्त ने उनकी थ्रेशर मशीन में कमियाँ ढूंढी और उसमें काफी सुधार किए। उनके दोस्त ने थ्रेशर को बिलकुल नए तरीके से तैयार किया।
लक्ष्मीदास मित्तल के इस बार के डिजाइन को काफी ज्यादा पसंद किया गया, और धीरे - धीरे मार्केट में उनकी कंपनी की पहचान बढ़ती ही चली गई। आज सोनालिका थ्रेशर की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन चुकी है। मित्तल का मानना है कि नाकामी से हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि इसके बजाय अपनी ग़लतियों से सबक लेकर आगे बढ़ते रहना चाहिए।