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Srikanth Bolla - अथाह संघर्ष और हौसले के दम पर नेत्रहीन श्रीकांत ने बनाई, 150 करोड़ की कंपनी - विकलांगों को देते हैं रोज़गा

Srikanth Bolla - अथाह संघर्ष और हौसले के दम पर नेत्रहीन श्रीकांत ने बनाई, 150 करोड़ की कंपनी - विकलांगों को देते हैं रोज़गा

 Srikanth Bolla अथाह संघर्ष और हौसले के दम पर नेत्रहीन श्रीकांत ने बनाई, 150 करोड़ की कंपनी -  विकलांगों को देते हैं रोज़गा


आंखों की रौशनी नहीं तो क्या हुआ, जज्बे और मेहनत के बल पर आंध्र प्रदेश के श्रीकांत बोला के हौसले इतने मज़बूत थे की बचपन से ही सुन रहे क्रूर तानों का भी असर नहीं हुआ। उनके इरादे  इतने पक्के थे की उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनायीं।

Srikanth Bolla


आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम गांव के श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla) का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी मासिक आय 2,000 से भी कम थी। श्रीकांत के जन्म के बाद परिवार में जश्न की जगह मायूसी का माहौल था,क्योंकि वो नेत्रहीन थे। पड़ोसियों ने श्रीकांत के माता - पिता से कहा- यह किसी काम का नहीं है, इसे मार दो।श्रीकांत के घर की कमाई का एकमात्र स्रोत था,खेती।

 श्रीकांत जैसे-जैसे बड़े होते गए, परिवार को उनकी चिंता बेचैन करने लगी। श्रीकांत जब 6 साल के हुए तब उनके पिता ने उनका नामांकन गांव की स्कूल में करवा दिया। मगर स्कूल में उन्हें आखिरी बेंच पर बैठा दिया जाता था, इसलिए नहीं कि वह काफी लंबे थे। उनके शिक्षकों को उन्हें पढ़ाना मुश्किल लगता था, इसलिए नहीं कि वह क्लास में पढ़ने में मन नहीं लगाते थे। इन सबकी सिर्फ एक वजह थी- वह दृष्टिहीन थे।

तब श्रीकांत के पिता ने अपने बच्चे के साथ भेदभाव होता देख श्रीकांत को लेकर हैदराबाद पहुंचे और वहां के नेत्रहीन स्कूल में दाखिला करा दिया। इस स्कूल का माहौल बिल्कुल अलग था। यहां सारे बच्चे नेत्रहीन थे। यहां किसी भी बच्चे में अंतर नहीं किया जाता था सब एक बराबर थे। इस स्कूल में श्रीकांत को पढ़ाई के साथ ही क्रिकेट और शतरंज खेलने का भी मौका मिला, और वो हर कक्षा में अव्वल आने लगे। इसके बाद दसवीं में  श्रीकांत ने स्कूल में टॉप किया। इसी दौरान उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के लीड इंडिया प्रोजेक्ट से जुड़ने का मौका मिला। जैसे ही श्रीकांत के टॉप करने की बात घरवालों तक पहुंची तो, उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा ।

 इसके बाद  श्रीकांत ने 12वीं में 98 फीसदी अंक हासिल किये। फिर श्रीकांत इंजीनिर्यंरग पढ़ना चाहते थे। मगर उस समय में भारत के किसी आईआईटी संस्थान में नेत्रहीन छात्र के दाखिले का प्रावधान नहीं था। इसके बाद श्रीकांत ने विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए प्रयास शुरू किया। तब अमेरिकी यूनिवर्सिटी ने उनके आवेदन को स्वीकार कर लिया। जिसके बाद श्रीकांत को अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में दाखिला मिला। इस तरह श्रीकांत MIT में पढ़ने वाले भारत के पहले नेत्रहीन स्टूडेंट बने। श्रीकांत के टैलेंट को देखते हुए अमेरिकी कंपनियों के ऑफर आने शुरू हो गए, मगर श्रीकांत देश के लिए कुछ करना चाहते थे। श्रीकांत दूसरे की कंपनी में नौकरी नहीं करना चाहते  थे , वो खुद की कंपनी बनाना चाहते  थे । इसलिए उन्होंने तय किया नेत्रहीन की वजह से जो तकलीफ और जो पीड़ा मुझे उठानी  पड़ी थी, वो मैं दूसरे दिव्यांगों को नहीं उठाने दूंगा।

विदेश से लौटने के बाद कुछ लोगों की मदद से हैदराबाद में उन्होंने 2012 में बोलेंट इंडस्ट्री की शुरुआत की। यह ऐसी कंपनी है जिसका मुख्य उद्देश्य अशिक्षित और अपंग लोगों को रोजगार देना है। इस कंपनी को शुरू करने के लिए श्रीकांत ने हैदराबाद के पास 8 लोगों के साथ मिलकर एक कमरे से छोटी सी कंपनी की शुरुआत की। उन्होंने लोगों के खाने-पीने के सामान की पैकिंग के लिए कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बनाई।

इसके बाद इस कंपनी को और बड़ा बनाने के लिए श्रीकांत को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। श्रीकांत ने मगर हार नहीं मानी और प्राइवेट बैंकों से फंड लेकर  काम को आगे बढ़ाया। श्रीकांत की कंपनी कंज्यूमर फूड पैकेजिंग, प्रिंटिंग इंक और ग्लू का बिजनेस करती है।  पांच शहरों में उनकी कंपनी के प्लांट हैं। शुरुआती पांच साल में कंपनी ने खूब तरक्की की। 2017 में फ़ोर्ब्स ने उन्हें एशिया के 30 साल से कम उम्र के उद्यमियों की सूची में उनका नाम शामिल किया। श्रीकांत बोला ने दृष्टिहीनता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी,आज वह सफलता की एक मिसाल हैं। जहां नेत्रहीनता खुद में बहुत बड़ा अभिषाप है, ऐसे में श्रीकांत बोला ने विदेश से इंजीनिर्यंरग कर साबित कर दिया की वो किसी से कम नहीं।

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