जया एकादशी व्रत कथा 2022: सभी पापों से मुक्ति दिलाता है जया एकादशी/ भीष्म एकादशी का व्रत
जया एकादशी/ भीष्म एकादशी का व्रत: एक साल में पड़ने वाली 24 या 26 एकादशियों में से माघ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी केलेण्डर के हिसाब से यह जनवरी अथवा फरवरी के महीने में आती है। ऐसा माना जाता है कि यदि यह एकादशी गुरुवार के दिन आ जाये तो उस दिन बहुत शुभ माना जाता है और इस दिन रखा जाने वाला व्रत अमोघ फल देने वाला होता है। जैस कि हम पहले भी बहुत बार बता चुके हैं कि एकादशी का व्रत भगवान् विष्णु के निमित्त रखा जाता है। एकादशी का व्रत लगभग सभी हिंदू परिवार रखते हैं और इस दिन भगवान् नारायण की स्तुति, अर्चन व पूजन करते हैं। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से सारे पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जया एकादशी को दक्षिण भारत के कुछ हिंदू समुदायों, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में 'भूमि एकादशी' और 'भीष्म एकादशी' के रूप में भी जाना जाता है।
जया एकादशी व्रत पारण मुहूर्त
जया एकादशी का व्रत 12 फरवरी, 2022 दिन शनिवार को रखा जाएगा. व्रत का पारण अगले दिन 13 फरवरी को होगा.
एकादशी के व्रत का अनुष्ठान:
इस दिन बिना कुछ खाये पीये ही निराहार होकर व्रत रखने का विधान है। वास्तव में एकादशी का व्रत एक दिन पहले दशमी तिथि की शाम से ही आरंभ हो जाता है। एकादशी के दिन पूर्ण उपवास रखने के लिए इस दिन सूर्योदय के बाद कोई भोजन नहीं किया जाता है। उपासक एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी तिथि (12वें दिन) के सूर्योदय तक निर्जल उपवास रखते हैं। व्रत के दौरान व्यक्ति को अपने मन में क्रोध, काम या लोभ की भावनाओं को प्रवेश नहीं करने देना चाहिए। यह व्रत शरीर और आत्मा दोनों को शुद्ध करने के लिए है। इस व्रत के पालनकर्ता को द्वादशी तिथि पर सम्मानित ब्राह्मणों को भोजन औश्र गरीबों को दान आदि देना चाहिये और फिर अपना उपवास तोड़ना चाहिए। व्रत रखने वाले को पूरी रात नहीं सोना चाहिए और भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए पूरी रात बितानी चाहिये। जया एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भक्त सूर्योदय के समय उठते हैं और जल्दी स्नान करते हैं। भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन 'विष्णु सहस्त्रनाम' और 'नारायण स्तोत्र' का पाठ करना शुभ माना जाता है। जो लोग जया एकादशी का व्रत नहीं करते हैं उन्हें भी इस दिन चावल आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिये और शरीर पर तेल आदि नहीं लगाना चाहिये।
जया एकादशी का महत्व(Jaya Ekadashi significance): जया एकादशी के महत्व और
कथा का उल्लेख 'पद्म पुराण' में पाया गया है। भगवान् श्री कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को इस शुभ एकादशी व्रत को करने की महानता और तरीके के बारे में बताया था। कहते हैं कि जया एकादशी का व्रत इतना शक्तिशाली है कि यह व्यक्ति को किए गए सबसे जघन्य पापों, यहां तक कि ब्रह्म हत्या से भी मुक्त कर सकता है।
जया एकादशी व्रत की कथा:
भगवान् कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को इसके बारे में बताते हुए कहा था कि एक बार इंद्र की सभा में अप्सराएं नृत्य कर रहीं थी। सभा में प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पवंत, उसकी लड़की पुष्पवती तथा चित्रसेन की स्त्री मालिनी और उसका पुत्र माल्यवान भी थे। उस समय पुष्पवती माल्यवान को देखकर मोहित हो गई और काम उसके मन में जाग गया। उसने अपने रूप, सौंदर्य, हाव-भाव से माल्यवान को कामासक्त कर दिया। पुष्पवती के अद्वितीय रूप के कारण माल्यवान भी कामासक्त हो गया। दोनों कामासक्त होकर यौन क्रियाओं में लिप्त हो गये। उन्हें अलग करने के लिये राजा इंद्र ने दोनों को बुला कर नाचने का आदेश दिया। इंद्र का आदेश सुनकर दोनों ही नाचने तो लगे लेकिन कामातुर होने के कारण सही से नृत्य नहीं कर पा रहे थे। इंद्र सब समझ गये और उन्होंने क्रोधित होकर दोनों को श्राप दे दिया कि तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच का रूप धारण करो और अपने कर्मों का फल भोगो।
इंद्र के श्राप के कारण दोनों हिमालय पर पिशाच बनकर दुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। दोनों को पूरी रात नींद नहीं आती थी। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा, न मालूम हमने पूर्व जन्म में ऐसे कौन से पाप किये हैं, जिससे हमें इतनी कष्टदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई है। तभी एक दिन अचानक दोनों की भेंट देवर्षि नारद से हो गई। देवर्षि ने उनसे दुख का कारण पूछा, तो पिशाच ने यथावत् वे संपूर्ण बातें कह सुनाई, जिनके कारण पिशाच योनि प्राप्त हुई थी। तब नारद जी ने उन्हें माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का संपूर्ण विधि-विधान बतला कर उसे करने को कहा। नारद के परामर्श से दोनों ने पूरे विधि विधान से जया एकादशी का व्रत रखा और पूरी रात भगवान् नारायण का स्मरण करते हुए रात जागते हुए बिता दी। दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही, भगवान विष्णु की कृपा से इनकी पिशाच देह छूट गई और दोनों फिर से पूर्व शरीर को प्राप्त होकर इंद्र लोक में पहुंच गये। वहां जाकर दोनों ने इंद्र को प्रणाम किया तो इंद्र भी इन्हें पूर्वरूप में देखकर हैरान हो गये और पूछा कि तुमने अपनी पिशाच देह से किस प्रकार छुटकारा पाया। तब दोनों ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया।