कभी शमशान की चिता पर रोटियां पकाने को हुईं थी मजबूर
कभी शमशान की चिता पर रोटियां पकाने को हुईं थी मजबूर, 1400 से अधिक अनाथ बच्चों के जीवन में उजाला करने वाली श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी (Sindhutai Sapkal ) के जीवन की जानिए प्रेरक कहानी
स्त्री के कई रूप हैं। प्रेम संग अटूट आस्था मिली तो ‘विद्रोही’ मीरा बन गई। दृढ़ संकल्पित होकर काल के पंजे से पति को खींच लाने वाली एक स्त्री सावित्री बन गई। स्त्री की शक्तिशाली भुजाओं में अनंत कथाएं हैं। किन्तु एक स्त्री मां के रूप में अपने बच्चों के लिए ईश्वर समान होती है, जो उनके जन्म से लेकर लालन पालन तक बच्चों की हर खुशी, जरूरत का ख्याल रखती है। लेकिन कभी किसी ऐसी मां के बारे में सुना है जो बिना मां-बाप के बच्चों के लिए न केवल मां बनी, बल्कि उनके लिए सड़कों पर भीख भी मांगती है। वो महिला 1400 अनाथ बच्चों की मां बन चुकी श्रीमती श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी हैं। जिन्होंने ममता की एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसकी जितनी सराहना की जाए वो कम होगी। श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी आज हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनके जीवन की प्रेरक कहानी आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। दूसरों की मदद के लिए अपना पूरा जीवन लगा देने वाली सिंधु ताई का पूरा जीवन बहुत संघर्ष में बीता था। सिंधु ताई को महाराष्ट्र की मदर टेरेसा कहा जाता है। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।
9 साल की उम्र में कई साल बड़े व्यक्ति से कर दी गई शादी
14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के चरवाहे परिवार में जन्मीं श्रीमती सिंधुताई ने बचपन से ही काफी कष्टों को सहा हैं। श्रीमती सिंधुताई के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनका परिवार मवेशी चराकर अपना गुजर-बसर करता था। श्रीमती सिंधुताई के पिता उन्हें पढ़ाना चाहते थे जबकि उनकी मां घर की आर्थिक परस्थितीयों को देखते हुए उनकी शिक्षा के विरोध में थी। हालांकि उनके पिता ने अपनी पत्नी के खिलाफ जाकर भी अपनी बेटी को स्कूल भेजना शुरू किया। घर की आर्थिक परस्थितीयों के चलते उन्हें चौथी क्लास में स्कूल छोड़ना पड़ा। सिंधुताई 9 साल की थीं तो उनकी शादी अपने से कई साल बड़े उम्र के व्यक्ति से कर दी गई। सिंधुताई ने केवल चौथी क्लास तक पढ़ाई की थी, वह आगे भी पढ़ना चाहती थीं लेकिन शादी के बाद ससुराल वालों ने उनके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया।
ससुराल वालों ने दिए कई कष्ट
20 वर्ष की आयु होते-होते श्रीमती सिंधुताई 3 बच्चों की मां बन चुकी थी। श्रीमती सिंधुताई के मन में हमेशा से गरीबों और पीड़ितों के लिए दया का भाव था। एक बार उन्होंने महिलाओं को मजदूरी के पैसे ना देने के कारण गाँव के मुखिया की शिकायत जिला अधिकारी से कर दी। इससे गुस्साएं मुखिया ने श्रीमती सिंधुताई के खिलाफ षड़यंत्र रचकर उन्हें उनके पति द्वारा ही घर से बाहर निकलवा दिया। उस समय श्रीमती सिंधुताई 9 महीने की गर्भवती थी। पति द्वारा मारपीट कर घर से बाहर निकाले जाने के बाद श्रीमती सिंधुताई ने बेहोशी की हालत में गायों के बीच एक बेटी को जन्म दिया और फिर अपने हाथ से नाल भी काटी। अपने गर्भनाल को उन्होंने पत्थर से मार मार कर काटा था।
कई बार आत्महत्या करने का आया विचार
श्रीमती सिंधुताई के पास कोई आश्रय नहीं था। उनके पिता का देहांत हो चुका था और उनकी मां ने श्रीमती सिंधुताई को घर में रखने से मना कर दिया। ऐसे में उन्होंने अपना पेट भरने के लिए ट्रेन में भीख मांगना शुरू कर दिया। कभी-कभी श्मशान घाट में चिता की रोटी भी खाई। जीवन की इन विपरीत परिस्थियों में कई बार उन्होंने आत्महत्या करने का भी विचार किया।
ऐसे मिली अनाथ बच्चों को सहारा देने की प्रेरणा
श्रीमती सिंधुताई अपने जीवन से निराश हो चुकी थीं। इसी बीच रेलवे स्टेशन पर उन्हें एक बेसहारा बच्चा मिला। उस समय उनके मन में यह विचार आया कि देश में कितने ऐसे बच्चे होंगे जिनको एक माँ की जरुरत है। तब से उन्होने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ उनके पास आएगा वह उनकी माँ बनेंगी। बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए उन्होंने खुद अपनी बेटी को एक ट्र्स्ट में गोद दे दिया और खुद पूरी तरह से बेसहारा बच्चों की मदद करने में जुट गई।
भीख मांग कर बच्चों का किया लालन-पालन
अनाथ बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए श्रीमती सिंधुताई (Sindhutai Sapkal) रेलवे स्टेशन पर गाना गाने लगी और उसके बदले में लोग पैसे देने लगे और उस पैसे से श्रीमती सिंधुताई भिखारी बच्चों का लालन पालन करने लगी।उसने ठान लिया की अब मरना नहीं है बल्कि मरते हुए को जिन्दा करना है उन्हें जीवन देना है। उन्हें मुश्किलों में भी जीना सीखना है। श्रीमती सिंधुताई मंदिरों में जाती, भीख माँगती और गाती और वहाँ से जो पैसे मिलते उससे भिखारी बच्चों का लालन पालन करती। श्रीमती सिंधुताई के बारे में लोगो को पता चलने लगा। लोग उन्हें माई और भिखारी बच्चों की माँ के रूप में जानने लगे।
अनाथ बच्चों के जीवन में किया खुशियों का उजाला
श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी ने अपना संपूर्ण जीवन अनाथ बच्चों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए कई जगह पर भाषण दिया। अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनाने के लिए श्रीमती सिंधुताई ने कई शहरों और गांवों का दौरा किया। श्रीमती सिंधुताई ने अनाथ बच्चों को बस सहारा ही नहीं दिया बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा भी दी। उनके द्वारा अपनाएं गए कई बच्चे आज डॉक्टर, वकील सहित अन्य पदों पर रहकर काम कर रहे हैं। श्रीमती सिंधुताई द्वारा शुरू किया गया यह सिलसिला महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं। श्रीमती सिंधुताई यहां सभी बच्चों की मां कहलाती हैं। उन्हें महाराष्ट्र की मदर टेरेसा भी कहा जाता है।
पद्मश्री से हुईं सम्मानित
अनाथ बच्चों की मां कहलाने वाली श्रीमती सिंधुताई ने कई बच्चों की शादी भी कराई हैं। उनके द्वारा शिक्षा प्राप्त कर कई बच्चे आज अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हैं। श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी के उत्कृष्ट कार्यों के देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च सम्म्मान पद्मश्री से नवाज़ा था। यही नहीं श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी ने बेसहारा बच्चों और महिलाओं के लिए जो किया वह अपने आप में मिसाल है। उन्हें इन अच्छे कामों के चलते 700 से भी ज्यादा सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रीमती सिंधुताई को DY पाटिल इंस्टिट्यूट की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है।
4 जनवरी 2022 को दिल का दौरा पड़ने से श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी का 73 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लेकिन श्रीमती सिंधुताई के अद्भुत कार्य हमेशा हमारे बीच जीवित रहेंगे और लोगों को प्रेरित करते रहेंगे। श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर सफलता की नई कहानी (Success Story) लिखी है। Digi Shala News श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी के महान कार्यों की तहे दिल से सराहना करता है और उन्हें शत-शत नमन करता है।