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कैसे दिव्यांग और गरीबी को हरा कर अंजना माली बनी एक सफल पेंटर

कैसे दिव्यांग और गरीबी को हरा कर अंजना माली बनी एक सफल पेंटर

कैसे दिव्यांग और गरीबी को हरा कर अंजना माली बनी एक सफल पेंटर

जो लोग जिंदगी में हालातों से हार नहीं मानते, वो देर से ही सही सफलता हासिल कर ही लेते हैं। ऐसी ही शख्सियत हैं ऋषिकेश की अंजना माली जिन्होंने दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद भी तमाम लोगों के अंदर आगे बढ़ने की उम्मीद जगाई है.आइए बताते हैं कैसे बदली इनकी जिंदगी...




अंजना माली ऋषिकेश के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं, वो बचपन से ही दिव्यांग हैं। उनके दोनों हाथ नहीं हैं और शरीर के दूसरे अंगों में भी दिक्कतें हैं।  इसलिए उन्होंने दूसरे काम के बजाए भीख मांगना शुरू कर दिया था। क्योंकि वो चाहती थी कैसे भी करके वो अपने परिवार की मदद कर सके। जब अंजना फुटपाथ पर भीख मांगा करती थी, तो उस वक्त लोग 1-2 रुपए देकर चले जाते थे। अंजना इन्हीं पैसे से पेंटिंग के लिए जरूरी रंग और ब्रश खरीदती थी, हाथ न होने के बावजूद भी अंजना गज़ब की चित्रकारी करती हैं।  वो पैरों की उंगलियों से तरह - तरह की पेंटिंग बनाती हैं, जिसे ऋषिकेश घूमने जाने वाले लोग, अंजना का हुनर देखकर होश खो बैठते हैं।

अंजना एक दिन ऋषिकेश के घाट पर बैठी - बैठी अपने पैरों से चारकोल का एक टुकड़ा पकड़कर कुछ लिखने की कोशिश कर रही थी। तभी विदेश से ऋषिकेश घूमने आई स्टीफेनी की नज़र अंजना पर पड़ी और उन्होंने देखा की पैरों से फर्श पर भगवान राम का नाम लिखना चाह रही थी। जिसके बाद विदेशी महिला खड़े होकर उन्हें देखने लगीं और ये पहचानने में जरा भी टाइम नहीं लगा कि अंजना के अंदर चित्रकारी की कला छिपी हुई है। विदेशी महिला ने अंजना को पैरों से पेंटिंग बनाने के साथ ही इज्जत से जीना सिखाया, ताकि वो अपनी एक अलग पहचान बना सके।

जिसके बाद अंजना ने पेंटिंग बनानी शुरू कर दी, लेकिन उन्होंने उस वक़्त भीख मांगना नहीं छोड़ा, क्योंकि रंग और ब्रश खरीदने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी। अंजना धीरे - धीरे बढ़िया-बढ़िया पेंटिंग बनाने लगीं, जैसे देवी-देवता, पशु-पक्षी और प्रकृति के नजारे को खूबसूरत पेंटिंग के जरिए उतारने लगी। 
ऋषिकेश घूमने आने वाले लोग उनकी चित्रकारी को देख पेंटिंग्स खरीदने से खुद को रोक नहीं पाते। अंजना की कमाई से ही उनके परिवार का खर्च चलता है,उनके परिवार में मां, बीमार पिता, और एक दिव्यांग भाई है।

विदेशी महिला स्टीफेनी पहली शख्स थीं, जिन्होंने उनकी कला के प्रति जुनून को पहचाना। लेकिन अंजना के लिए पेंटिंग करना इतना आसान नहीं था,क्योंकि न सिर्फ हाथ, बल्कि उनकी कमर में भी कुछ परेशनी थी जिसकी वजह से वो झुककर चलती हैं। लेकिन कठोर परिश्रम के दम पर उन्होंने हिम्मत को हारने नहीं दिया और मुश्किलों का डटकर सामना भी किया। कुछ समय बाद उनकी पेंटिंग्स को लोग हज़ारों तक ख़रीदने लगे, एक पेंटिंग को तैयार करने में उन्हें 4-5 दिन का टाइम लगता है।उनकी बनाई हुई पेंटिंग जब लोग अच्छे दाम में खरीदने लगे तो उन्होंने भीख मांगना छोड़ दिया। अंजना चाहती हैं कि कला की बारीकियों को वो और भी बेहतर तरीके से समझें और खुद का आशियाना बना सके।

हर किसी की जिंदगी में संघर्ष होता है, किसी की जिंदगी में ज्यादा तो किसी की जिंदगी में कम। जिंदगी चुनौतियों का ही नाम है, इसलिए किसी भी परिस्थिति में खुद पर संयम बनाए रखें, ताकि अपने सपनें को पूरा कर सके।

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