रोज़ाना 5 रुपए दिहाड़ी पाने वाली ज्योति रेड्डी ने विदेश में खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी
रोज़ाना 5 रुपए दिहाड़ी पाने वाली ज्योति रेड्डी ने विदेश में खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी
कहावत है कि सपने उन्हीं के सच होते हैं,जो सपने देखना किसी भी हाल में नहीं छोड़ते हैं। ऐसी ही कहानी है एनआरआई, ज्योति रेड्डी की, जिन्होंने जिंदगी में चल रही तमाम मुश्किलों को दरकिनार कर अपनी काबिलियत और मेहनत के बल बूते मात्र 5 रुपए रोज की मेहनताना से करोड़ों तक का सफर तय किया है।
ज्योति का जन्म तेलंगाना के वारांगल जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था, बचपन में उनकी मां का देहांत हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उनके परिवारवालों ने उन्हें एक अनाथालय में छोड़ दिया, यही रहकर ज्योति ने मन लगाकर पढ़ाई करनी शुरू कर दी और 10वीं का एग्जाम उन्होंने फर्स्ट डिवीजन से पास किया। लेकिन गरीबी के चलते वो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई। घर की माली हालत ठीक न होने के चलते उन्होंने पढाई छोड़कर खेतों में काम करना शुरू कर दिया। जहां उस वक़्त उन्हें मजदूरी के रूप में सिर्फ 5 रुपये मिलते थे। लेकिन ज्योति की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि 16 साल की उम्र में उनकी शादी उनसे 10 साल बड़े एक व्यक्ति से कर दी गई थी।
शादी के दो साल बाद ही ज्योति 2 बच्चियों की मां बन चुकी थी,लेकिन घर की आर्थिक हालात ठीक न होने के चलते बच्चियों की परवरिश में मुश्किलें आने लगी। ऐसे में ज्योति एक बार फिर खेत में काम करने लगी। घर में पैसे की तंगी के चलते पति और पत्नी के बीच रोज झगड़े भी होते थे.लेकिन ज्योति ने सोच लिया था कि चाहें कुछ भी हो जाए अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी जरूर देनी है, ज्योति ने मन ही मन सोचा जो तकलीफें मुझे उठानी पड़ी वो बच्चियों को नहीं उठाने दूंगी।
ज्योति को खेत में काम करने के दौरान सिर्फ पांच रुपए का मेहनताना मिलता था, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत के साथ कार्य को जारी रखा। खेत में काम करने के साथ ही ज्योति ने कुछ लोगों से मिलना - जुलना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद ज्योति को केंद्र सरकार की एक स्कीम के तहत नेहरू युवा केंद्र से जुड़ने का मौका मिला। इस संस्थान से जुड़ने के बाद उन्होंने फिर से अपनी पढ़ाई और साथ ही टाइपिंग भी करनी शुरू कर दी। कुछ समय बाद उन्होंने एडल्ट एजुकेशन टीचर के रूप में एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और उस वक़्त उनकी मासिक आमदनी 120 रुपये थी। इस पैसे से वो बच्चों के लिए फल और दूध खरीद कर ले जाती थी। लेकिन उनके पति को उनका काम करना पसंद नहीं था, इसके बावजूद भी उन्होंने अपने काम को जारी रखा।
1992 में उन्हें 70 किलोमीटर दूर एक स्कूल में स्पेशल टीचर की जॉब मिली,लेकिन रोज़ाना इतने दूर तक सफर करना उनके लिए आसान नहीं रहा। इस दौरान आने-जाने में ही उनकी आधी सैलरी खत्म हो जाती, इसलिए उन्होंने ट्रेन में साड़ी बेचनी शुरू कर दी। संघर्ष के दिनों में भी ज्योति ने पढऩा नहीं छोड़ा और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी से 1994 में बीए की डिग्री पास की। बीए पास करते ही उन्होंने कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर पाठ्यक्रम में एडमिशन ले लिया।
साल 2000 में अमेरिका में रह रही उनकी चचेरी बहन गांव आई, जिसके बाद ज्योति उनकी लाइफस्टाइल से काफी प्रभावित हुईं। ज्योति के कजिन ने उनको अमेरिका आने का ऑफर दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार लिया। ज्योति ने अपने बच्चों का मिशनरी स्कूल में एडमिशन करा दिया और अमेरिका चली गई। वहां पहुंचने के बाद भी उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनकी इंग्लिश अच्छी नहीं थी, इसलिए जॉब मिलने में उन्हें काफी दिक्कतें हुईं। उन्होंने अमेरिका के शुरूआती दिनों में सेल्स गर्ल से लेकर पेट्रोल पंप पर काम करने का काम किया। काफी संघर्ष के बाद उन्हें 12 घंटे में $60 डॉलर वाली एक जॉब मिली। ऐसे काम के जरिए उन्होंने 2001 तक करीब 40 हजार डॉलर की बचत की। इसके अलावा वीजा के काम को लेकर ज्योति अक्सर वीजा दफ्तर और कोर्ट जाने लगी।
वीजा ऑफिस लगातार जाने के बाद उन्होंने देखा कि वीजा प्रोसेसिंग कराने के लिए लोग मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहते है। जिसके बाद उन्होंने वीजा कंसल्टिंग का काम करना शुरू किया। धीरे - धीरे इस काम में वो सफल होने लगी फिर उन्होंने वीजा मामले में कंसल्टिंग देने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया और उसे कंपनी में बदल दिया। आज के समय में सॉफ्टवेयर सॉल्युशंस के रियालंस समेत कई बड़ी कंपनी क्लाइंट है। आज ज्योति 'सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन' कंपनी की सीईओ हैं और वो अब अरबो की मालकिन हैं।
कभी एक कमरे के मकान और अनाथालय में रहने वाली ज्योति ने अपनी काबिलियत के दम पर इस मुकाम को हासिल किया, उन्हें खुद पर यकीन था कि देर से ही सही वो जिंदगी में कुछ बड़ा करेंगी। इसलिए सपनें जरूर देखो,लेकिन उसको पूरा करने के लिए हिम्मत भी रखो।
कहावत है कि सपने उन्हीं के सच होते हैं,जो सपने देखना किसी भी हाल में नहीं छोड़ते हैं। ऐसी ही कहानी है एनआरआई, ज्योति रेड्डी की, जिन्होंने जिंदगी में चल रही तमाम मुश्किलों को दरकिनार कर अपनी काबिलियत और मेहनत के बल बूते मात्र 5 रुपए रोज की मेहनताना से करोड़ों तक का सफर तय किया है।
ज्योति का जन्म तेलंगाना के वारांगल जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था, बचपन में उनकी मां का देहांत हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उनके परिवारवालों ने उन्हें एक अनाथालय में छोड़ दिया, यही रहकर ज्योति ने मन लगाकर पढ़ाई करनी शुरू कर दी और 10वीं का एग्जाम उन्होंने फर्स्ट डिवीजन से पास किया। लेकिन गरीबी के चलते वो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई। घर की माली हालत ठीक न होने के चलते उन्होंने पढाई छोड़कर खेतों में काम करना शुरू कर दिया। जहां उस वक़्त उन्हें मजदूरी के रूप में सिर्फ 5 रुपये मिलते थे। लेकिन ज्योति की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि 16 साल की उम्र में उनकी शादी उनसे 10 साल बड़े एक व्यक्ति से कर दी गई थी।
शादी के दो साल बाद ही ज्योति 2 बच्चियों की मां बन चुकी थी,लेकिन घर की आर्थिक हालात ठीक न होने के चलते बच्चियों की परवरिश में मुश्किलें आने लगी। ऐसे में ज्योति एक बार फिर खेत में काम करने लगी। घर में पैसे की तंगी के चलते पति और पत्नी के बीच रोज झगड़े भी होते थे.लेकिन ज्योति ने सोच लिया था कि चाहें कुछ भी हो जाए अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी जरूर देनी है, ज्योति ने मन ही मन सोचा जो तकलीफें मुझे उठानी पड़ी वो बच्चियों को नहीं उठाने दूंगी।
ज्योति को खेत में काम करने के दौरान सिर्फ पांच रुपए का मेहनताना मिलता था, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत के साथ कार्य को जारी रखा। खेत में काम करने के साथ ही ज्योति ने कुछ लोगों से मिलना - जुलना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद ज्योति को केंद्र सरकार की एक स्कीम के तहत नेहरू युवा केंद्र से जुड़ने का मौका मिला। इस संस्थान से जुड़ने के बाद उन्होंने फिर से अपनी पढ़ाई और साथ ही टाइपिंग भी करनी शुरू कर दी। कुछ समय बाद उन्होंने एडल्ट एजुकेशन टीचर के रूप में एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और उस वक़्त उनकी मासिक आमदनी 120 रुपये थी। इस पैसे से वो बच्चों के लिए फल और दूध खरीद कर ले जाती थी। लेकिन उनके पति को उनका काम करना पसंद नहीं था, इसके बावजूद भी उन्होंने अपने काम को जारी रखा।
1992 में उन्हें 70 किलोमीटर दूर एक स्कूल में स्पेशल टीचर की जॉब मिली,लेकिन रोज़ाना इतने दूर तक सफर करना उनके लिए आसान नहीं रहा। इस दौरान आने-जाने में ही उनकी आधी सैलरी खत्म हो जाती, इसलिए उन्होंने ट्रेन में साड़ी बेचनी शुरू कर दी। संघर्ष के दिनों में भी ज्योति ने पढऩा नहीं छोड़ा और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी से 1994 में बीए की डिग्री पास की। बीए पास करते ही उन्होंने कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर पाठ्यक्रम में एडमिशन ले लिया।
साल 2000 में अमेरिका में रह रही उनकी चचेरी बहन गांव आई, जिसके बाद ज्योति उनकी लाइफस्टाइल से काफी प्रभावित हुईं। ज्योति के कजिन ने उनको अमेरिका आने का ऑफर दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार लिया। ज्योति ने अपने बच्चों का मिशनरी स्कूल में एडमिशन करा दिया और अमेरिका चली गई। वहां पहुंचने के बाद भी उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनकी इंग्लिश अच्छी नहीं थी, इसलिए जॉब मिलने में उन्हें काफी दिक्कतें हुईं। उन्होंने अमेरिका के शुरूआती दिनों में सेल्स गर्ल से लेकर पेट्रोल पंप पर काम करने का काम किया। काफी संघर्ष के बाद उन्हें 12 घंटे में $60 डॉलर वाली एक जॉब मिली। ऐसे काम के जरिए उन्होंने 2001 तक करीब 40 हजार डॉलर की बचत की। इसके अलावा वीजा के काम को लेकर ज्योति अक्सर वीजा दफ्तर और कोर्ट जाने लगी।
वीजा ऑफिस लगातार जाने के बाद उन्होंने देखा कि वीजा प्रोसेसिंग कराने के लिए लोग मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहते है। जिसके बाद उन्होंने वीजा कंसल्टिंग का काम करना शुरू किया। धीरे - धीरे इस काम में वो सफल होने लगी फिर उन्होंने वीजा मामले में कंसल्टिंग देने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया और उसे कंपनी में बदल दिया। आज के समय में सॉफ्टवेयर सॉल्युशंस के रियालंस समेत कई बड़ी कंपनी क्लाइंट है। आज ज्योति 'सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन' कंपनी की सीईओ हैं और वो अब अरबो की मालकिन हैं।
कभी एक कमरे के मकान और अनाथालय में रहने वाली ज्योति ने अपनी काबिलियत के दम पर इस मुकाम को हासिल किया, उन्हें खुद पर यकीन था कि देर से ही सही वो जिंदगी में कुछ बड़ा करेंगी। इसलिए सपनें जरूर देखो,लेकिन उसको पूरा करने के लिए हिम्मत भी रखो।